GUGLU-MUGLU
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हम फिरते है महफ़िल महफ़िल,
हम भीड़ में तन्हा होते है,
बिन लब खोले सब कह डाला,
कभी गीत मिलन के गाते है
हर रोज आयेगा खवाबों में ,
वोह कह के गया था जो मुझको ,
अब जाने न देगे उसे कही ,
हम मौत की नींद ही सोते है …
हम सब का दिल बहलाते है
और खुद को भूल ही जाते है,
कभी शब् भर चाँद निहारते है,
कभी दिन ढलते सो जाते है
हम कठोर बदन वाले
पर दिल से कितने कोमल है
चेहरे पर हँसी बिखरी है
पर दिल ही दिल में रोते है
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