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जाने क्यूँ आज मन बहुत भारी लगा रहा है. कुछ अस्थिर सा लग रहा है सब कुछ, दिन सामान्य ही है पर जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है जैसे बहुत कुछ खो गया है मेरा. आज फिर वही हुआ जो पिछले १४ साल में जाने कितनी बार हुआ है और फिर से मेरी वही हालत थी जो हर बार हो जाती है.
ऑफिस से घर आते हुए रास्ते में एक जाना पहचाना सा चेहरा नज़र आया, लगा जैसे पहचान रहा हूँ पर कुछ याद नहीं आ रहा था और इतने में उस इन्सान ने हाथ देकर मुझे रुकने का इशारा किया, मै रुका तो उन्होंने थोडा झिजकते हुए मुझसे पूछा “तुम पाण्डेय जी के लड़के हो न” मैंने उन्हें प्रणाम कहते हुए ह में जवाब दिया. उन्होंने खुश होते हुए मुझे आशीर्वाद दिया. मुझे भी सहसा याद आया कि ये वही अंकल है जिनसे पापा ने मुझे पहाड़ी मंदिर से लौटते हुए मिलवया था लगभग १५ साल पहले. मुझे आश्चर्य हो रहा था की ये मुझे कैसे पहचान गए, इतने दिनों में तो मै काफी बदल गया हूँ, अभी मेरे मन में ये चल ही रहा था कि उन्होंने पूछ लिया
“बेटा बाबा (पापा को उनके अधिकतर दोस्त यही कह कर पुकारते थे) कैसे है बहुत साल हो गए उनसे मिले, याद भी है की नहीं हमारी उनको ”
मै क्या जवाब देता, आँखों से आसुओ की धारा बह गयी, बिना मेरे कुछ कहे ही शायद उन्हें सब समझ में आ गया, मेरे कंधे पर हाथ रखा और सॉरी कहते हुए वो भी फफक पड़े.
मै घर तो आ गया हूँ पर अभी भी मन उन अंकल के प्रश्नों पर ही जा रहा है. मुझे भी तो उन्ही सवालो के जवाब चाहिए जो उन्होंने पूछे
कैसे हो पापा आप, क्या याद नहीं आती हमारी, क्या भूल गए हो आप वो सब, बोलो न पापा कैसे हो आप… आज फिर से उसी बचपन में पहुँच गया हूँ…….जब थक जाता हूँ और चाहता हूँ आप के कंधे की तब मन उदासियों में घिर जाता है ….आप से फिर से कुछ सवालो के जवाब चाहिए दो न पापा
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आज कहने को सब कुछ है पर
जीवन में सबसे बड़ी कमी है
मेरे सृजक मेरे पापा
आप साथ नहीं है
जब मै छोटा था
माँ कहती जल्दी नहीं चलता था
पापा पैरो की मालिश करते
धुप में लेके मुझको रहते
सर से बहता वो पसीना
पर चेहरे पर जरा सिकन न
बोलो पापा याद है सब न
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थाम के अंगुली मुझे चलाना
मंदिर की उन सीढियों पर ले जाना
गिरने से वो मुझे बचाना
और मेरे जरा सा थकने पर
झट से मुझे गोद में उठाना
पापा सब याद है न
मै आज भी डगमगा रहा हूँ
थामने को मुझे हाथ बढाओ न
पापा फिर से आ जाओ न
चोट लगी थी मेरे सर पर
शायद खून भी निकला था
पर दर्द उस चोट का
पापा चेहरे पर आपके दिखा था
मुझको हँसाने की खातिर
वो सीढियों पर हाथ मारना
और अपने रुमाल से मेरे आसुओ को पोछना
पापा मै अब भी रोता हूँ
आसू पोछने आ जाओ न
पापा फिर से आ जाओ न
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देखे सपने मेरी खातिर
पूरी की हर इक्छा मेरी
जाने कितने कष्ट उठाये
पर न कभी ये कही जताया
चल के उनके आदर्शो पर
मै जो हूँ वो बन पाया हूँ
अपने सपनो को सच होता
एक बार तो देख जाओ न
पापा फिर से आ जाओ न
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