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पिछले कई दिनों से मै देखा रहा हूँ जाने क्या हो गया है मेरे प्यारे शहर को. हर दिन के अखबार में तीन-चार ऐसी खबर होती है जो झकझोर कर रख देती है. माँ ने बेटे को किसी काम से रोका तो नाराज़ होकर बेटे ने आत्महत्या कर ली. पिता ने बेटी को कम नंबर आने पर दो बातें क्या कही बेटी ने फांसी लगा ली ओर लिख दिया मेरी मौत के लिए कोई जिम्मेवार नहीं है. ऐसी घटनाये युवाओ के साथ ही ज्यादा हो रही है. ६-७ क्लास के बच्चे जिन्होंने अभी जीवन पथ पर बढ़ने की शुरुवात ही की है वो ऐसे कदम उठा रहे है. ११-१२ वी कक्षा के लड़के-लड़किया जो नासमझ तो नहीं है फिर भी जाने क्यूँ ऐसी नासमझी भरे रास्ते पर जा रहे है. मन बड़ा विचलित हो रहा है आखिर ये किस ओर जा रहे है हमारे कदम. इतना अंधकार क्यूँ है हमारी युवा पीढ़ी के बीच.
मैंने बड़े निकट से ऐसे परिवार के दुःख को देखा है जिनके होनहार ने न जाने किस मनोदशा के कारन ऐसा कदम उठा लिया था. मैंने भी अपने एक प्रिये मित्र को खोया है ओर मुझे पता है कि नादानी में कि हुई ये गलती कितनी भारी पड़ती है पुरे परिवार पर. मै कोई लेखक नहीं हूँ ओर मुझे साहित्य कि कोई जानकारी भी नहीं है. आज में यहाँ बस वही लिख रहा हूँ जो मैंने महसूस किया है. ओर बस ये प्रार्थना कर रहा हूँ उन सभी से जिनके मन में कभी भी ये विचार आता है कि किसी बात से नाराज़ होकर वो आत्महत्या कर ले कृपया ऐसा कभी न करे. इश्वर ने यह जीवन अगर हमें दिया है तो हमारा कर्तव्य है कि हम इस दुनिया में खुशियों के लिए कुछ करे ये नहीं कि आवेश में आकार बस ये लिखते हुए कि “मेरी मौत का कोई जिम्मेवार नहीं है” ऐसी खता कर बैठे जिसकी सजा सदियों तक एक परिवार उठाये.
जाने आज क्यूँ ऐसे विचलित हुआ जाता है मन
जाने क्यूँ किस बात पे ऐसे यूँ घबराता है मन
ये शहर को क्या हुआ है
हर तरफ ख़ामोशी है
झरने तो निर्झर गिरे
फिर नदी क्यूँ प्यासी है
हर सुबह अखबार में
बस खबर ये आती है
बहने वाली निर्मम हवा ये
चिरागे कुछ बुझाती है
उम्र भर जिसको लगाये
रखा माँ ने सिने से
माँ की बातें ही उन्हें क्यूँ
दूर करती जीने से
वो जिन्होंने तेरी खातिर
त्याग दी अपनी खुशी
उनकी बस एक बात पे
दे दी तुने अपनी बलि
जाने माँ कई रात बस
ये सोच कर न सोई थी
कि कही तेरी नींद में
पड़ जाये ना खलल कोई
माँ ने तेरी खातिर ही तो
दो शब्द तुझको थी कही
तू चला गया मगर, माँ
उम्र भर रोती रही
नयन जिसने देखे थे
वो ख्वाब तेरी जीत के
तेरी एक गलती के कारण
अब है यूँ पथराए से
इससे बड़ी कायरता की
और क्या पहचान है
भाग अपनी गलतियों से
दे दी तुने जान है
मौत का मेरी यहाँ
न कोई कसूरवार है
लिख के तुम बस चल दिए
और लौट कर न आये फिर
पर यहाँ माँ हर रोज मरती
है तुम्हारी याद में
कुछ भी अंतर है नहीं
उनमे और जिन्दा लाश में
वो पिता की उंगलिय
जिन्हें थाम कर चला था तू
बांह जिनमे झूल कर
यूँ लाड से पला था तू
एक बार सोचा भी नहीं
उनपे तब क्या बीतेगी
कैसे उठा पायेगा वो
कंधे पे तेरी अर्थी
कैसे देगा वो भला
तेरी चिता को मुखाग्नि
कैसे खुद से ही दे पायेगा
ख्वाब को अपने तिलांजलि
है यही विनती तुमसे
प्यारी बहने – भाइयो
सुख नहीं दे सकते तो फिर
दुःख का कारण न बनो
जाग जाओ प्रिये
भारत भूमि के नायकों
बढ़ के आगे इस तिमिर के
धुंध का दमन करो
बढ़ के ये संकल्प लो
ये फिर नहीं दोहराएगा
कोई दीपक ऐसे बुझा
ये फिर सुना न जायेगा
काश कल अहले सुबह
जब हाथो में अखबार हो
न हो कोई ऐसी खबर
फिर जिस पे यूँ धिक्कार हो
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