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मुझे शर्म आती है ऐसे व्यवस्था में जीकर ……………..

GUGLU-MUGLU
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प्रिये मित्रों, आज सुबह-सुबह टीवी पर एक अजीब तमाशा देखा. रोज की तरह समाचारों की जानकारी के लिए खबरिया चेनलो की और रुख किया. हर तरफ बस एक ही खबर थी. संसद पर हमले के १० साल पुरे . जैसे बहुत बड़ा तीर मार लिया हो हमने “विकाश के दस साल” जिसमे संसद की सुरक्षा में बहुत विकाश हुआ.

संसद भवन में एक “चबूतरे” को फूलो से खूब सजाया गया था जैसे नयी नवेली किसी दुल्हन की सेज हो. और हमारे सभी माननीय गन कतारबद्ध होकर उस “चबूतरे” पर फूल चढा रहे थे. उप राष्ट्रपति महोदय, प्रधानमंत्री जी, अडवानी जी, लोकसभा  की अध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया मैडम आदि – आदि ………………………………..सभी ने बारी-बारी फूलो से सजे उस चबूतरे पर एक मुट्ठी फूल चढा दिया और कार्यक्रम समाप्त.

सभी व्यस्त हो गए अपने रोजमर्रा के कामो में. बहुत सारे काम है इतना समय ही निर्धारित था इस कार्यक्रम के लिए. और फिर संसद के कार्ये सुरु हो गए. और इस तरह माननीयों ने १३ दिसम्बर २००१ के सहीदो को याद कर लिया. बहुत बड़ा काम है इतनी व्यस्तता के बाद भी माननीयों को याद रहा की आज कुछ समय इस कार्य के लिए निकलना है. सायद यह खबरिया चैनलो का असर ही था जो इन चीजों को सर पे उठाये रखते है वरना इतनी फुर्सत कहा जनप्रतिनिधियों को की यह सब कुछ याद रखे.

मैंने पुष्पार्पण कार्यक्रम के बाद चैनेल बदला. एक खबर आ रही थी. एक विधवा रो रही थी और खबरिया चैनेल वाले ये समझाने में लगे थे की “आपको तो गर्व होना चाहिए” आपके पति ने देश के संसद को बचने के लिए अपने प्राण निछावर कर दिए. धन्य है आप”. और मैंने देखा की उस महिला के आखो से आसुओ का सैलाब लगातार बहता जा रहा था. पता नहीं पर मेरी आँखे अचानक ही छलक आई. मेरी तो कोई नहीं लगती थी वो पर ना जाने मै खुद को रोक ही नहीं पा रहा था. तभी एक युवक का चेहरा नज़र आया सायद उसने अपने पिता को खोया था १३ दिसम्बर २००१ को. काफी आक्रोश था उसकी बातों में. उसे अपने पिता के आकाल मृत्यु का जितना दुःख था उतना ही इस बात का भी की उनकी हत्या के लिए जिम्मेवार आदमी आज भी “सरकारी दामाद” बना बैठा है.

सायद उस वक्त भी जब वो लड़का अपनी बातें रख रहा था वो “सरकारी दामाद” बिरयानी और गोस्त का मज़ा उठा रहा होगा. उसकी कामयाबी के १० नायब साल पुरे हो गए और इन दस सालो में सरकारी दामाद रहते हुए उसकी भी खूब खातीर हुई. और उसे यह भी पता है सायद की ये १० साल २०, ३० , ४० में भी आराम से ही बदल जायेंगे और वो ऐसे ही सरकारी दामाद बना रहेगा. और कही उसके नापाक आकाओ ने फिर किसी हवाई जहाज का अपहरण कर लिया तो भारत सरकार उसे दामाद की तरह ही सरहद के पार भेज देगी.

बहुत ही दुःख होता है अपनी देश की व्यवस्था पर जहा एक सिद्ध दोष व्यक्ति आराम का जीवन जी रहा है और एक कर्तव्य निष्ठ सिपाही का बेटा इस दुःख में टुटा जा रहा है की उसके पिता का हत्यारा आज भी आराम का जीवन जी रहा है. सायद एक देशभक्त के रक्त में भी देशद्रोह के बिज़ उपज रहे है और हमारी सरकार उसकी सिचाई कर रही है.

कभी सोचा है हमने की क्या १३ दिसम्बर २००१ को ०९ लोग ही मरे थे?  नहीं ०९ परिवारों का खात्मा हो गया था उस दिन. ०९ परिवारों का सपना टुटा था उस दिन. उन सभी ९ परिवारों के बुजुर्गो के बुढ़ापे की लाठी टूट गयी थी. उन बुजुर्गो ने जिन्होंने ये सोचा था की उनका बेटा उनकी अर्थी को कंधा देगा उन्ही बुजुर्गो ने तिरंगे में लिपटे अपने लाल को मुखाग्नि दी. सोच के ही रूह सिहर जाती है की आखिर क्या बीती होगी उन पर. सभी ०९ परिवारों की बेटियों ने सपना देखा था की उनके माता पिता उनका कन्यादान करेंगे पर हुआ क्या? बच्चे इस इंतज़ार में थे की पापा मिठाई लेकर शाम को घर आयेंगे. पर शाम को पापा आए तो लेकिन उनकी चिर निद्रा कभी टूटी ही नहीं. सब कुछ तबाह हो गया …………………………..सबने अपनों को खो दिया और सभी सहीदो ने अपने परिवार से ऊपर अपने कर्तव्य को रखते हुए हमारे माननीयों की प्राणों को बचाने के लिए अपने प्राण दे दिए.

मुझे शर्म आती है ऐसे व्यवस्था में जीकर जहाँ देश के लिए प्राण देने वाले सपूतो के हत्यारे को हम दामाद वाला खातिर देते है. मैं यह नहीं कहता की किसी को फासी दो ……………………..पिछले १० सालों में जब ये बात नहीं मानी गयी तो आब क्या होगा. पर एक अनुरोध है की कृपया ये “पुष्पांजलि” का आडम्बर ना फैलाए. इसका असर आप माननीयों पर तो नहीं होता पर उन परिवारों के लोगो की आत्मा कलप उठती है जिनके अपनों के हत्यारों को आपने सरकारी दामाद बना दिया है.

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