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हमने भी किसी को चाहा था कभी

GUGLU-MUGLU
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सुबह शाम नव वसंत के आंगन में

अरमान किये गिरी के आँचल में

देखा किसी के बहकते कदम

हंसते-हंसते सराहा था कभी

हमने भी किसी को चाहा था कभी


अदाए उनकी ललचाने लगी थी

हमें देख वो भी शर्माने लगी थी

प्यार में बह गए थे कही

हंसते-हंसते सराहा था कभी

हमने भी किसी को चाहा था कभी


लब खोले बिना भी उसने

सब कुछ मुझसे कह डाला था

मन की बात उनका दुपट्टा

उड़-उड़ के बस कह जाता था

हंसते-हंसते सराहा था कभी

हमने भी किसी को चाहा था कभी


अपने अधरों पर भी

बस नाम उन्ही का रहा था कभी

हर पल में उनको पाया था

हंसते-हंसते सराहा था कभी

हमने भी किसी को चाहा था कभी




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