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प्रिय मित्रों,
सभी को मेरा सादर नमस्कार। अल्प विराम के उपरांत कुछ लिखने जाओ तो ऐसा लगता है मानो गर्मी की छुट्टी के खत्म हो जाने पर कोई विधालय जाने को कह रहा हो। पर कोशिश कर रहा हूं अपने सच को शब्दों में ढ़ालने की।
आज लिखने का विषय बहुत ही बेहतरीन है। अपने जीवन के सबसे बेहतरीन अनुभव को शब्द रुप देना थोड़ा कठिन लग रहा है। सोचता हूॅ क्या लिखू मैं उस प्रेम के विषय मे ं जिसने मेरे जीवन में ऐसी खुशियां भर दी हैं जो कभी खत्म नहीं हो सकती।
आज मैं किसी पुरस्कार को पाने की होड़ में आकर कुछ नहीं लिख रहा। मेरी ऐसी कोई चाहत नहीं कि मेरे लेख को पुरस्कार मिले क्योंकि ‘‘ जीवन में प्रेम से बड़ा कोई पुरस्कार हो ही नहीं सकता और मेरा मानना है कि प्रेम रुपी भारत-रत्न की प्राप्ति के उपरांत जीवन में और किसी पुरस्कार की आवश्यकता भी नहीं है।
सच कहूं लेखनी की दृष्टि से प्रेम भी एक अजीब विषय है, आजीवन दुसरो के प्रेम के बारे में आप पढ़ते रहो तो बहुत ही अच्छा लगता है, आपने यदि अपने प्रेम के विषय में कुछ लिख दिया तो परेशानियां शुरु और यदि कभी सौभाग्य से आपने अपने जीवन में किसी से प्रेम कर लिया तब तो कोहराम ही मच जाता है। पर इस मंच पर आज यह कविता समर्पित है मेरी प्रिया को
तुम ज्योति हो मेरे जीवन की
जिसने अंधियारा मिटाया है
मैं क्या हूं क्यों हूं कैसे हूं
तुमने मुझको बतलाया है
तेरा रुप अनूप है अति सून्दर
चेहरे पर तेज निराला है
आंखे हैं तेरी मस्त मग्न
जैसे मद्य का कोई प्याला है
तेरे चेहरे पर बिखरी मुस्कान
करती हर राह मेरी आसान
हर कदम पर साथ मेरा देकर
तुमने रिस्तों को दी पहचान
जब तक न मिला था साथ तेरा,
था कुछ भी नहीं आधार मेरा
मेरे जीवन में नई उर्जा
बनकर आया है प्यार तेरा
वह सपनों में आकर तेरा
फिर मंद-मंद यू मुस्काना
हर कदम पर साथ निभाने की
बातें हर दिन फिर दुहराना
तुम दूर कभी जब होती हो
आंखें मेरी भर आती हैं
और होती हो जब पास मेरे
तो स्नेह की वर्षा होती है
अब क्या लिखूं तेरे बारे में
हर शब्द अधूरा लगता है
तुम्हें पाकर अपने जीवन में
हर सपना पूरा लगता है
बस यूं ही रहना पास मेरे
बनकर मेरी यादों का सफर
और यूं ही ख्वाब सजाकर के
बीतेगी अपनी बाकी उमर…………………..
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