GUGLU-MUGLU
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जीवन का हर पल एक पानी के बुलबुले जैसा ,
पल रुक नही सकता और बुलबुला फूटे
बिना रह नही सकता ।
हर पल की सच्चाई स्वीकार कर
सुख-दुख खुशी सब कुछ उसमें या
फिर कुछ परछाई निर्लय जीवन की,
सब कुछ समा जाता है पल में
लगता हैं पल कितना छोटा है।
पल की गहराई में जाओ ,
है छिपा उसमें जीवन का रस ।
सब कुछ याद दिलाकर कभी हँसा
जाता हैं पल और
कभी रुला जाता हैं पल।
हर पल में आभास हैं विस्तृत जीवन का ,
जीवन का विस्तार ही हैं ,यह जुड़ता पल
पल ही आँसू बिखराता हैं और
हर खुशी को संजोए रखता हैं।
इस पल से ही तो जीवन का
आकार बदल जाता हैं।
जीवन के हर दर्शन को हर
पल ही तो संभाले रहता हैं।
सोचों जो बुलबुला फूट गया
लौटकर कहाँ कब बनता हैं।
पल और पर पल भी इसी तरह
जो बीत गया
वह लौटकर फिर कहाँ आता हैं।
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