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सपने का सच

GUGLU-MUGLU
GUGLU-MUGLU
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आज फिर ऑंखों में नमी है
सबकुछ तो है पर फिर भी कुछ कमी है
सांसे तो चल रही हैं फिर भी
धड़कन न जाने क्यों थमी है
आज फिर …………………………

जाने कहां से फिर हाथों में
आज पुरानी कलम है आई
फिर से लगी है मुझपर मुस्काने
मेरे जीवन की तन्हाई।

जीवन की राहों में कोई
क्यों इतना करीब आता है
दिन में सपने दिखलाता है
फिर बादल में खो जाता है।

राहों के कंकर चुन करके,
सपनों का महल तैयार किया
और सपने के हर लम्हों में
उसके होने का एहसास हुआ

वो सपनों में आना उनका
और मंद-मंद फिर मुस्काना
हर कदम पर साथ निभाने की
बाते हर दिन फिर दुहराना

पर सपना तो सपना ही है
कब, कहां, कभी साकार हुआ
जब नींद खुली तो मुझको भी
कुछ खोने का एहसास हुआ

आज फिर जीवन की राहों पर
मेरा एक सपना टुटा है
वो साथी मेरा, जो है सबसे अलग
जाने क्यों मुझसे रुठा है

सपना जब भी कोई टुटता है
तो होता नहीं है शोर कहीं
बातें तो खत्म हो जाती हैं
यादों पर चलता जोर नहीं

सब कुछ तो पहले जैसा है
कुछ खास फर्क भी नहीं पड़ा
जिसे कहते थे वो मेरी पहचान
बस मैने खो दी अपनी मुस्कान

ये आंखें भी हद करती हैं,
जाने कब कैसे बरसती हैं
यह जानकर भी वो है अपना नहीं
उसकी चाहत में ही तरसती हैं

आंखों में अभी भी है वो दिवास्वपन
जिसमें हुआ था उनका आगमन
अंदाज वो उनका मस्त मगन
चंदन का सा चेहरे का रंग

है पता मुझे वो आएगा नहीं
पर फिर भी मुझे है इंतजार
ऐ काश की जीवन की राहों में
एक सपना हो जाए साकार.

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