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फिर याद आई…

GUGLU-MUGLU
GUGLU-MUGLU
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आज इतनी पी की रोक न पाया आसू अपने
याद आये वो सारे सपने जो थे कभी अपने
कमीनी है दुनिया कमीने है हम लोग
है सही मे इश्क एक अनजाना सा रोग
कब आदत हो गयी थी उनकी पता ही नही चला
थी ये एक मोहब्बत शायद आज यकीं हुआ ,
मेरी बातो मे वोह थी , मेरी यादो मे वोह थी ,
मेरी आँखों मे वोह थी , मेरे अंदाज मे वोह थी ,
रोक न पा रहा था आज अपने को ,
क्यू न भुला पा रहा था उन पलो को .
आज मे हु पर वोह नही है , पर कोई गिला नही दोस्त
क्यू की आज मे रुसवा हु पर वोह नही है
यही एक अहसास है मेरी खुमारी का ,
और शायद यही एक इलाज़ है इस बिमारी का
खुश रहो ये सोच के की वोह भी कही खुश है
और बरते चलो तुम भी क्यू की तेरी मंजिल भी शायद थोडी ही दूर हो

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